*सुनो.... सावधानी ही इलाज है, दूरी ही दवाई है।* (कृन)
दिन प्रतिदिन लोगों को मौत की ओर ले जा रहा कोरोनावायरस धीरे-धीरे अपने रूप बदलते हुए अब और भी खतरनाक होता जा रहा है।
कई मुल्क ऐसे हैं जहां लाशों के ढेर लग गए हैं लोग अपने करीबियों को अपने नजदीकियों को अपने परिजनों को मरने के बाद दफनाने तक के लिए तैयार नहीं है।
हालांकि कई जगह इसका टीका विकसित करने का प्रयास जारी है परंतु वह प्रयास भी तीन-चार महीने से पहले सफल नहीं होंगे। ईको के सफल परीक्षण के बाद उन्हें बाजार में आने में 3 से 6 महीने का वक्त अवश्य लग जाएगा तब तक यह महामारी विनाश कर चुकी होगी।
इस खतरनाक बीमारी और परिस्थिति के बारे में आपको कुछ जानकारी दें।
कोरोना के तीन प्रकार सामने आए हैं।
एक है सिंप्टोमेटिक, जिसमे सुखी खांसी, गले मे दुखन, तेज़ बुखार के लक्षण होते है।
एक है प्रीसिंप्टोमेटिक, इसमे भी यही लक्षण होते है मगर देर से होते है।
एक है एसिंप्टोमेटिक
इनमें सबसे खतरनाक एसिंप्टोमेटिक है इसमें किसी प्रकार के कोई लक्षण नजर नहीं आते।
80 फीसदी इसी श्रेणी के है।
बताया जा रहा है कि यह वायरस एशिया में जून से सितंबर तक सबसे खतरनाक स्थिति में होगा
उस वक्त मौसम कभी गर्म, कभी सर्द, कभी चिप चिपे पसीने वाला होता है।
सितंबर तक अधिकांश देशों में भुखमरी की स्थिति आ चुकी होगी।
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वही आपको बताते चलें देश में लगभग 50 से 60,000 वेंटिलेटर।है और कोरोनावायरस से मरने वाले अधिकांश लोगों का अंत समय सांस रुकने लगता है।
किसी भी कीमत पर सांस नहीं आता, बहुत दुखद मौत होती है डॉक्टर केवल उन्हें मरते देख सकते हैं उनकी चीख सुन सकते हैं उनकी तड़प देख सकते हैं परंतु कुछ नहीं कर सकते।
और अंत मे ऐसे हालात हैं जब परिजन भी आसपास नहीं होते क्योंकि परिजनों को कही और क्वारन्टीन किया होता है।
इस वायरस ने अब फेफड़ों के साथ किडनी पर भी असर करना शुरू कर दिया है 40 फीसदी मामलों में किडनी फेल हो रही है और किडनी के डैमेज होने पर डायलिसिस की जरूरत होती है।
हिंदुस्तान में डायलिसिस की बहुत ही कम मशीनें हैं। मुजफ्फरनगर की बात करें तो संभवत यहां दो तीन से अधिक डायलिसिस मशीन ही नहीं होंगी।
मतलब स्पष्ट है कि किडनी की खून से गंदगी छानने की क्षमता खत्म हो जाती है और आदमी अंत मे किडनी फेल होने से मर जाता है।
*इस बीमारी का जब तक इलाज नहीं मिलता। इसका टीका नहीं बनता तब तक इससे बचना ही एकमात्र उपाय है।*
*135 करोड़ के भारत में अगर 100000 लोगों की भी रोज जांच होने लगे तो लगभग 37 साल तमाम देशवासियों की जांच में लग जाएंगे... अगर यह जांच बढ़ाकर 1000000 लोगों की भी रोज की जाए तो भी 4 वर्ष से अधिक समय जांच में ही लग जाएगा.*
*इसलिए केवल एक दूसरे से दूर रहिए फिजिकल डिस्टेंस बनाकर रखिए अन्यथा आप यकीन मानिए कि आप मानव बम बनने वाले हैं....*
*हालांकि यह इतना सूक्ष्म विषाणु है वायरस है यह किसी ना किसी रूप में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी चपेट में अवश्य ही लेगा।*
*बस इंतजार कीजिए कि कोई टीका, दवाई, कोई जड़ी बूटी इसके इलाज के रूप में सामने आ जाए और लोग उसका इस्तेमाल कर अपनी जान बचा सके*
*(विबा)*